मुकेश उपाध्याय ( न्यूज़ स्ट्रोक )
आगरा, 15 जनवरी । भाजपा ने आगरा की नौ विधानसभा सीटों में से पांच सीटों पर बदलाव किया है। इन सभी पर बदलाव भाजपा और आरएसएस के उन सभी अंदरूनी सर्वे का परिणाम है जिनमें विधायकों का प्रदर्शन संतोष जनक नहीं था। बदलाव की संभावना आगरा उत्तर और दक्षिण में भी थी लेकिन अंत में इन दोनों सीटों पर विराजमान पुरुषोत्तम खंडेलवाल और योगेंद्र उपाध्याय के भाजपा संगठन और आरएसएस में संबंध काम आये।
पिछले चुनाव में भाजपा ने जिले की सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा ने फतेहपुर सीकरी से निवर्तमान विधायक एवं राज्यमंत्री चौधरी उदयभान सिंह समेत जिले के पांच सिटिंग विधायकों का टिकट काट दिया है।
आगरा ग्रामीण से हेमलता दिवाकर और एत्मादपुर से रामप्रताप चौहान की टिकट पर तो शुरू से ही खतरा मंडरा रहा था। सूत्रों के अनुसार ज्यादातर सर्वे में इन दोनों के कामकाज को संतुष्ट माना ही नहीं गया था। एत्मादपुर में भाजपा को एक ऐसा चेहरा चाहिए था जो व्यक्तिगत तौर पर लगातार जनता से जुड़ा हुआ हो ताकि उसकी छवि और भाजपा के वोट मिलकर जीत का संयोजन बना सकें।
ऐसे में डॉ. धर्मपाल सिंह से अच्छा कोई चेहरा भाजपा को नजर नहीं आया। इसमें कोई दो राय नहीं कि धर्मपाल सिंह के पास राम प्रताप चौहान के मुकाबले कहीं ज्यादा जनाधार तो है ही। दूसरी बात क्षेत्र में रामप्रताप चौहान से कहीं ज्यादा सक्रिय धर्मपाल ही थे।
ग्रामीण सीट पर हेमलता दिवाकर कभी भी एक नेता के तौर पर नहीं उभरी। फतेहाबाद से विधायक जितेंद्र वर्मा का भी यही हाल था। खेरागढ़ के विधायक महेश गोयल से तो क्षेत्र की जनता बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं थी। सूत्रों के अनुसार महेश गोयल जनता के करीब नहीं पहुंच पाए और उनसे दूरी बनाए रहे। महेश गोयल तक कुछ लोगों की पहुंच थी। क्षेत्र की जनता से उनका सरोकार विधायक बनने के बाद बहुत कम रहा।
भाजपा में एक बड़ा नाम चौधरी उदयभान सिंह मंत्री पद पर काबिज होने के बावजूद अपनी छवि को गैर विवादित नहीं बना पाए और ना ही मंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल क्षेत्र और प्रदेश में भाजपा की अपेक्षाओं के अनुरूप था। भाजपा ने जो क्षेत्र में सर्वे कराया था उसमें साफ महसूस हुआ था कि अगर उदयभान सिंह को दोबारा टिकट दी गई तो यह सीट निकालना बहुत मुश्किल होगा।
लखनऊ से मिली अंदरूनी जानकारी के अनुसार पुरुषोत्तम खंडेलवाल की जगह किसी अग्रवाल समाज के उम्मीदवार के नाम पर भी विचार किया जा रहा था लेकिन पुरुषोत्तम खंडेलवाल की ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर वाली सीधी साधी छवि काम आयी। भाजपा की राजनीति को लखनऊ में करीब से देखने वाले एक पत्रकार मित्र ने बताया कि भाजपा संगठन में लंबे समय तक जुड़े रहने के कारण पुरुषोत्तम खंडेलवाल को इसका फायदा मिला। इसके साथ ही उनको उनके अधूरे कार्यकाल को भी पॉजिटिव में लिया गया। कहा गया कि पुरुषोत्तम खंडेलवाल को इस आधार पर एक और कार्यकाल के लिए मैदान में उतारा जा सकता है।
भाजपा के उत्तर विधानसभा से आने वाले नगर निगम के ज्यादातर पार्षद भी पुरुषोत्तम खंडेलवाल के कामकाज से संतुष्ट नहीं थे। इसके बावजूद पुरुषोत्तम खंडेलवाल की छवि को लेकर किसी को शिकायत नहीं थी।
वहीं दक्षिण से वर्तमान विधायक योगेंद्र उपाध्याय के विरोध में भाजपा के कुछ लोग जरूर थे लेकिन तमाम सर्वे में यह बात निकल कर आई थी कि क्षेत्र के मतदाताओं के हर वर्ग में योगेंद्र उपाध्याय की पकड़ अब भी बनी हुई है । हालांकि प्रदेश की राजधानी में खेल चला। लखनऊ में भाजपा के दो बड़े नेता आपस में उपाध्याय की टिकट काटने और दिलवाने में लगातार लगे रहे। आगरा में कुछ चमचा टाइप और छुटभइया नेताओं ने एक भाजपा नेत्री को लेकर अपनी बात आगे रखने की कोशिश की लेकिन भाजपा में यह चेहरा नया था। जमीन पर कोई वजूद नहीं था। समाजसेवी के नाम पर सिर्फ अखबारों में छपी तस्वीरें थी। लेकिन तमाम विरोध के बावजूद योगेंद्र उपाध्याय दक्षिण से सबसे बड़े दावेदार बने रहे। यहीं वजह है कि दूसरे प्रतिद्वंदी जहां दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में पोस्टर वार करते रहे वहीं उपाध्याय क्षेत्र में लोगों से मिलते रहे। यह पार्टी नेतृत्व को भाया और उपाध्याय की टिकट बरकरार रही। आगरा की इन्हीं दोनों ( उत्तर और दक्षिण ) सीटों को लेकर कई दिनों तक मंथन चला।
वहीं बाह में राजघराने का रुतबा तो बरकरार है ही। दूसरे भाजपा से रानी पक्षालिका को कोई चुनौती भी नहीं दे रहा था। आगरा देहात से पूर्व राज्यपाल बेबीरानी मौर्य को टिकट देकर भाजपा ने बड़ा दांव खेला है। यहां पर वह हेमलता दिवाकर के मुकाबले कई गुना ज्यादा मजबूत प्रत्याशी साबित होंगी। फतेहपुरसीकरी से पूर्व सांसद चौधरी बाबू लाल, खेरागढ से अभी हाल ही में बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए भगवान सिंह कुशवाह, फतेहाबाद से छोटे लाल वर्मा को टिकट दिया है। आगरा कैंट से जीएस धर्मेश लेकर कुछ शिकायतें थीं लेकिन शिकायतें कितनी बड़ी नहीं थी कि उनकी टिकट को लेकर कोई दिक्कत आती। चौधरी बाबूलाल लोकसभा चुनाव में उत्तर टिकट कटने से लेकर अब तक नाराज लेकिन उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी और अंदर अपनी स्थिति मजबूत करते रहे। इसका साफ तौर पर फायदा मिला।
अपनी बात उन्होंने पार्टी नेतृत्व के समक्ष मजबूती से रखी और अपना इनाम ले गए।
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