मुलायम ने खेला दांव और अजीत सिंह की 'सीएम' की कुर्सी आ गई उनके पास



👉मुलायम सिंह का पहली बार मुख्यमंत्री बनना भी एक रोचक किस्से से कम नहीं

न्यूज़ स्ट्रोक

लखनऊ, 10 अक्टूबर। मुलायम सिंह का आज सुबह निधन हो गया। राजनीति के माहिर मुलायम सिंह का पहली बार मुख्यमंत्री बनना भी एक रोचक किस्से से कम नहीं। समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के स्वघोषित उत्तराधिकारी मुलायम सिंह यादव का जन्म 1939 में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के एक छोटे से गांव सैफई में हुआ। उन्होंने 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर सबसे कम उम्र में विधायक बनकर दमदार तरीके से अपने सियासी करियर का आगाज किया। उसके बाद उनके राजनीतिक सफर में उतार-चढ़ाव तो आए लेकिन राजनेता के रूप में उनका कद लगातार बढ़ता गया।
साल 1989 के विधानसभा चुनाव में जनता दल की जीत के बाद चौधरी अजीत सिंह का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित हो चुका था, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने ऐसा दांव चला कि अजित सीएम बनने का सपना संजोते रह गए और खुद मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के सीएम बन बैठे। फिर सूबे में उन्होंने ऐसी सियासी जड़ें जमाईं कि वो तीन बार सीएम रहे। इतना ही नहीं उनके बेटे अखिलेश यादव भी बाद में मुख्यमंत्री बने।
उत्तर प्रदेश में अस्सी के दशक में जनता पार्टी, जन मोर्चा, लोकदल (अ) और लोकदल (ब) ने मिलकर जनता दल का गठन किया। चार दलों की एकजुट ताकत ने असर दिखाया और 1989 के चुनाव में एक दशक के बाद विपक्ष को 208 सीटों पर जीत मिली। यूपी में उस समय कुल 425 विधानसभा सीटें थीं, जिसके चलते जनता दल को बहुमत के लिए 14 अन्य विधायकों की जरूरत थी।

जनमोर्चा के विधायक मुलायम के समर्थन में

यूपी में जनता दल की ओर से मुख्यमंत्री पद के दो उम्मीदवार थे. पहले लोकदल (ब) के नेता मुलायम सिंह यादव और दूसरे चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत की दावेदारी कर रहे उनके पुत्र चौधरी अजित सिंह। उत्तर प्रदेश में जनता दल की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए चौधरी अजित सिंह का नाम पूरी तरह तय हो चुका था. चौधरी अजित सिंह बाकायदा शपथ लेने के तैयारियां कर रहे थे, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने ऐसा दांव चला कि जनमोर्चा के विधायक अजित सिंह के खिलाफ खड़े हो गए और मुलायम को सीएम बनाने की मांग कर बैठे

डीपी यादव मुलायम के लिए बने सहारा 

उस समय केंद्र में भी जनता दल की सरकार थी।विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। यूपी में पार्टी की जीत के साथ ही वीपी सिंह ने घोषणा कर दी थी  कि चौधरी अजित सिंह मुख्यमंत्री और मुलायम सिंह उपमुख्यमंत्री होंगे। लखनऊ में अजित सिंह की ताजपोशी की तैयारियां चल रही थीं कि मुलायम सिंह यादव ने उपमुख्यमंत्री पद ठुकरा कर सीएम पद के लिए दावेदारी कर दी। तब प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने फैसला किया कि मुख्यमंत्री पद का फैसला लोकतांत्रिक तरीके से विधायक दल की बैठक में गुप्त मतदान के जरिए होगा। इसके बाद जो हुआ, वह सूबे की रोचक राजनीति का एक बड़ा किस्सा है।
वीपी सिंह के आदेश पर मधु दंडवते, मुफ्ती मोहम्मद सईद और चिमन भाई पटेल बतौर पर्यवेक्षक उत्तर प्रदेश भेजे गए. दिल्ली से लखनऊ भेजे गए पर्यवेक्षकों ने कोशिश की कि मुलायम सिंह यादव उपमुख्यमंत्री का पद स्वीकार कर लें,  लेकिन, मुलायम सिंह इसके लिए तैयार नहीं हुए। मुलायम सिंह ने तगड़ा दांव खेलते हुए बाहुबली डीपी यादव की मदद से अजीत सिंह के खेमे के 11 विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया। इस काम में उनकी मदद उस समय बेनी प्रसाद वर्मा भी कर रहे थे।

सीएम की रेस में सिर्फ पांच वोट से हारे अजित 

विधायक दल की बैठक के लिए दोपहर में जनता दल के विधायकों को लेकर गाड़ियों का काफिला विधानसभा में मतदान स्थल पर पहुंचा। विधायक अंदर थे और सारे दरवाजे बंद कर दिए गए। बाहर जनता दल के कार्यकर्ताओं का हुजूम लगातार मुलायम सिंह यादव जिंदाबाद के नारे लगा रहा था। तिलक हॉल के बाहर दोनों नेताओं के समर्थक बंदूक लहरा रहे थे। जनता दल विधायक दल की बैठक में हुए मतदान में मुलायम सिंह यादव ने चौधरी अजित सिंह को पांच वोट से मात दे दी। इस तरह से चौधरी अजित सिंह का सपना साकार नहीं हो सका और मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बन गए। पांच दिसंबर 1989 को मुलायम ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

चार दल मिले पर नेताओं के दिल नहीं मिले 

उत्तर प्रदेश में भले ही चार पार्टियों ने मिलकर जनता दल बनाया था, लेकिन नेताओं के दिल नहीं मिल सके। दरअसल, डकैती उन्मूलन की नीतियों का मुलायम सिंह ने प्रबल विरोध किया था, जिसकी वजह से वीपी सिंह को पूर्व में मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। इस वजह से वह मुलायम को पसंद नहीं करते थे। उधर, चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत को लेकर अजित सिंह और मुलायम सिंह में खींचतान थी।
केंद्र में वीपी सिंह की सरकार के पतन के बाद मुलायम ने चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) के समर्थन से अपनी सीएम की कुर्सी बरकरार रखी। जब अयोध्या का मंदिर आंदोलन तेज हुआ तो कार सेवकों पर साल 1990 में उन्होंने गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें एक दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए थे। बाद में मुलायम ने कहा था कि ये फैसला कठिन था। हालांकि इसका उन्हें राजनीतिक लाभ हुआ और उनकी मुस्लिम परस्त छवि बनी। उनके विरोधी तो उन्हें 'मुल्ला मुलायम' तक कहने लगे थे।


साल 1992 में मुलायम सिंह ने जनता दल (समाजवादी) से अलग होकर समाजवादी पार्टी के रूप में एक अलग पार्टी बनाई। तब तक पिछड़ी मानी जाने वाली जातियों और मुसलमानों के बीच मुलायम खासे लोकप्रिय हो चुके थे। मुलायम सिंह का ये एक बड़ा कदम था जो उनके राजनीतिक जीवन के लिए मददगार साबित हुआ। वो तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे और केंद्र में रक्षा मंत्री के रूप में भी सेवाएं दीं।

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