- न्यूरोलाॅजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के 70वें अधिवेशन में दूसरे दिन 108 से अधिक तकनीकी सत्र हुए
- विशेषज्ञों ने ब्रेन की अलग-अलग बीमारियों को लेकर आधुनिक इलाज के बारे में विस्तार से चर्चा की
न्यूज़ स्ट्रोक
आगरा, 09 दिसंबर। बेशक ब्रेन जब बिगड़ता है तो शरीर के हर अंग को अपना शिकार बना सकता है। इसलिए न्यूरो विशेषज्ञों के सामने हमेशा ही दोहरी चुनौती होती है। ब्रेन डिजीज के अधिकांश मामलों में एक चिकित्सक सबसे पहले जान बचाने के बारे में सोचता है। इसके बाद किसी तरह की शारीरिक विकलांगता को बचाने के बारे में सोचता है। यदि शारीरिक विकलांगता से बचा नहीं जा सकता तो विकलांगता को मामूली स्तर पर लाने की कोशिश करता है। यह कहना है विशेषज्ञों का।
फतेहाबाद रोड स्थित होटल जेपी पैलेस में आयोजित न्यूरोलाॅजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के 70वें में दूसरे दिन 108 से अधिक तकनीकी सत्र, कार्यशालाएं और शोधपत्र पढ़े गए। देश-दुनिया से आए न्यूरो विशेषज्ञों ने महत्वपूर्ण जानकारियां दीं। एक-दूसरे से ज्ञान साझा किया।
ब्रेन हेल्थ के लिए सुधारें आदतें: डाॅ. आरसी मिश्रा
आयोजन कमेटी के अध्यक्ष और वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डाॅ. आरसी मिश्रा ने कहा कि मस्तिष्क एक जटिल अंग है जिसमें अरबों न्यूरांस हैं। इसमें विभिन्न जटिल नेटवर्क होते हैं जो शरीर के सामान्य कामकाज के लिए सहायक होते हैं। यह हमारे आस-पास की दुनिया के देखने के तरीके को तय करता है और उस पर प्रतिक्रिया करता है। इसलिए अपने मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए जीवनशैली में कुछ बदलाव जरूरी हैं जैसे शारीरिक व्यायाम, उचित आहार और पोषण, चिकित्सा जोखिमों को नियंत्रित करना, पर्याप्त नींद और आराम। डाॅ. मिश्रा ने कहा कि ब्रेन में जब कोई समस्या होती है तो ऐसा नहीं है कि वह केवल ब्रेन तक ही सीमित हैं बल्कि इसका असर हमारे पूरे शरीर पर पड़ सकता है जैसे लकवा या कोमा, इसके अलावा शरीर के किसी अंग में विकलांगता आ सकती है और वह काम करना बंद या कम कर सकता है।
सफलता दर सावधानी पर निर्भर: डाॅ. अरविंद कुमार अग्रवाल
वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डाॅ. अरविंद कुमार अग्रवाल ने कहा कि शरीर के अन्य रोगों की तरह ही हम कई बार दिमागी रोगों की सफलता दर पर बात करने लगते हैं। दरअसल कोई भी रोग लाइलाज नहीं है। अगर समय रहते बीमारी की पहचान हो जाती है तो इसका इलाज मुमकिन हो जाता है। बीमारी गंभीर होने पर ठीक होने में थोड़ा वक्त जरूर लग सकता है। वैसे यह लक्षणों और अवस्था पर निर्भर करता है। जैसे ब्रेन स्ट्रोक के अधिकांश मामलों में समय से अस्पताल पहुंचना जरूरी है।
मरीज परिवार का हिस्सा बन जाता है: डाॅ. वरिंदर पाल सिंह
न्यूरोलाॅजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डाॅ. वरिंदर पाल सिंह ने कहा कि एक न्यूरो विशेषज्ञ का प्रशिक्षण बहुत अलग होता है। यह सीखने के बाद भी चलता रहता है। भारत में मस्तिष्क के रोगों की जो स्थिति है उसकी वजह से न्यूरोसर्जन्स पर भारी दबाव है। उन्हें हर वक्त मरीजों को देखते रहना है। इसलिए प्रशिक्षण काल में ही अपने आप को इस बात के लिए तैयार कर लेना चाहिए कि यहां निजी कुछ भी नहीं है। जो है मरीजों के लिए ही है। मरीज परिवार का हिस्सा बन जाता है। रिश्तेदारों का भरोसा चिकित्सक पर होता है। अगर आप इस सब में संतुलन नहीं रख पाएंगे तो आपके काम पर असर पड़ेेगा।
इन्होंने दिए व्याख्यान
डाॅ. एसके गुप्ता, डाॅ. अरुण श्रीवास्तव, डाॅ. द्वारकानाथ श्रीनिवास, डाॅ. अनीता जगेटिया, डाॅ. पी सरत चंद्रा, हाॅल बी में डाॅ. दीपक झा, डाॅ. सचिन बोरकर, डाॅ. अनीता महादेवन, डाॅ. मंजुल त्रिपाठी, डाॅ. टोसीकी एंडो, हाॅल सी में डाॅ. सुरेश डंगानी, डाॅ. दिलीप पानीकर, डाॅ. सुरेश नैयर, डाॅ. दलजीत सिंह, डाॅ. आरएन साहू, डाॅ. विवेक टंडन, हाॅल डी में डाॅ. एन मुथुकुमार, डाॅ. सुधीर दुबे, डाॅ. आलोक अग्रवाल, डाॅ. पटकर सुशील वसंत, डाॅ. कार्तिकेयन एम, डाॅ. विलसन पी डिसूजा।
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