हॉस्टल के दिनों में सुरेश रैना से
रैंकिंग के नाम पर हुई हैवानियत
न्यूज़ स्ट्रोक
नई दिल्ली। भारतीय क्रिकेटर सुरेश रैना ने अपनी आत्मकथा पुस्तक में कई ऐसे चौंकाने वाले खुलासे किए हैं जो पुस्तक पढ़ने वालों को हिलाकर रख देते हैं। अपनी बायोग्राफी में उन्होंने साफ लिखा है कि लखनऊ के स्पोर्ट्स हॉस्टल में उनके साथ हैवानियत की हदें पार की गईं। रैगिंग के नाम पर उन्हें गालियां दी गईं, पीटा गया। कई बार हॉकी स्टिक से भी मारा गया।
रैना ने अपनी बायोग्राफी 'बिलीव' में आगरा का जिक्र करते हुए लिखा है कि एक बार एक टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए वह आगरा जा रहे थे। साथ तमाम सीनियर्स भी थे। कईयों के पास सीट नहीं थी, ऐसे में हमें दरवाजे के पास जितनी जगह मिली, वहीं पसर गए। सीनियर्स वहां भी तंग करने आ गए और जब बत्ती बंद हुई तो हम पर चप्पल और जूते फेंकने लगे। इसी दौरान एक लंबा-तगड़ा लड़का मुझ पर बैठ गया और मेरे चेहरे पर पेशाब करने लगा।
बकौल रैना, इसके बाद मैंने अपना आपा खो दिया और उसे जोर से धक्का देकर घूंसा मारा। वह लड़का ट्रेन से गिरते-गिरते बचा। यह पहला मौका था जब मैंने रह रैगिंग का हिंसात्मक तरीके से प्रतिरोध किया था। तब मैं 13 साल का था। बकौल रैना, बाद में हॉस्टल ने मामले की जांच के लिए कमेटी भी गठित की थी।
आत्मकथा में सुरेश रैना लिखते हैं कि सीनियर्य, जूनियर बच्चों को तरह-तरह से परेशान करते। वे अपने गंदे कपड़े हमारे कमरे में या बिस्तर पर फेंक जाते थे और मेरा जिम्मा था कि मैं उनके कपड़े धोकर उनतक पहुंचाऊं। सीनियर्स मुझे परेशान करने के अलग अलग तरीके ढूंढते। किसी दिन सुबह 3:30 बजे बर्फ जैसा ठंडा पानी डाल देते, ठंड के दिनों में यह किसी यातना से कम नहीं था। या आधी रात को लॉन की घास कटवाते।
अब जब वह सफल हुए तो सब बदल गया
सुरेश रैना लिखते हैं कि जिन लोगों ने हॉस्टल के दिनों में मेरी जिंदगी जहन्नुम बना दी थी, कई बार मैं उनको ढूंढ निकालता हूं। अब वे लोग मुझसे बात करके खुश होते हैं लेकिन मैं सोचता हूं कि उन लोगों ने कितनी आसानी से सब भुला दिया कि उन्होंने मेरे साथ क्या किया था। वे कहते हैं कि रैगिंग एक ऐसी बुराई है जिसे खत्म करना बेहद जरूरी है, अगर आप इसके भुक्तभोगी हैं तो खुद को अपराधी मानना बंद करें और इसके खिलाफ मजबूती से आवाज उठाएं।
0 Comments