सपा में नहीं, अब भाजपा में दिख रही काफ़ी चिंता और हताशा

भाजपा मीडिया में आगे और

 सपा-रालोद जमीन पर आगे




मुकेश उपाध्याय ( न्यूज़ स्ट्रोक )

लखनऊ/आगरा। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के तीन चरण पूरे हो चुके हैं। तीन चरणों में अब तक 172 सीटों पर उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है। अब तक जो चुनाव हुए हैं, उसमें समाजवादी पार्टी काफी उत्साह में दिख रही है। ज्यादातर चुनाव समीक्षकों का मानना है कि समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच बेहद करीबी टक्कर चल रही है। लहर तो समाजवादी पार्टी की ही है, भाजपा को तो अपनी सत्ता बचानी है।
 भाजपा के तमाम लोग अब जीत को लेकर संशय में दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या गृह मंत्री अमित शाह या फिर खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सभी में अब हताशा दिखने लगी है।
कुल मिलाकर यह दिख रहा है कि मीडिया में भाजपा और जमीन पर समाजवादी पार्टी मजबूत है। बहुत कुछ स्थिति पश्चिमी बंगाल जैसी बनती दिख रही है। बीबीसी के विश्लेषण में राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे का कहना है "अब तक तीनों फ़ेज़ के मतदान में कुल मिलाकर भाजपा को पचास फ़ीसदी का नुक़सान हो चुका है। आगे अवध में भाजपा की बढ़त हो सकती है, लेकिन पूरब में फिर भाजपा को नुक़सान होगा।"
 दरअसल इस बार डबल इंजन की सरकार में भाजपा को डबल ऐंटी इंकम्बेंसी का सामना करना पड़ रहा है। इस वक़्त मोदी समर्थक सिर्फ़ इस बात से संतोष कर रहे हैं कि उन्होंने और योगी ने मुसलमानों को सत्ता से दूर और दबाकर रखा है, भले महंगाई बढ़ी या विकास नहीं हुआ पर वह भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने को प्रयत्नशील हैं।
एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इस चुनाव में ऐसे तमाम ग़ैर राजनीतिक संगठन और सिविल सोसायटी के लोग भाजपा के ख़िलाफ़ काम कर रहे हैं, जिन्हें लगता है कि मोदी और योगी की जोड़ी देश में लोकतंत्र और सामाजिक सद्भाव के लिए ख़तरा है।
भाजपा के सभी बड़े नेताओं में हताशा इस तरह दिख रही है कि उनके सुर बदल गए हैं। कोई भी नेता अब महंगाई पर, नोटबंदी पर, रोजगार पर बात नहीं करता। वर्ष 2012 में सत्ता में आने पर अखिलेश ने क्या-क्या गलतियां की या फिर कितनी गुंडागर्दी रही, भाजपा का चुनाव प्रचार इस पर टिका है। 2017 से अब तक जो काम हुए उनकी अच्छाइयों से ज्यादा अखिलेश की खामियां बताई जा रही हैं।

 योगी उग्र, अखिलेश में दिखा संयम
भाजपा के छोटे और बड़े नेता क्या बोल रहे हैं, खुद उनको नहीं पाता। ऐसा ही कुछ पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को लेकर हुआ था। आप पूरे कैंपेन पर नजर डालिये, अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की भाषा जहां अब तक संयमित दिख रही है, वहीं योगी आदित्यनाथ बुलडोजर तैयार है,  गर्मी निकाल दूंगा, 10 मार्च के बाद यह कर दूंगा, वह कर दूंगा,जेल में डाल दूंगा जैसी भाषा बोलकर भाजपा से अलग हटकर अपनी बात रख रहे हैं। ऐसा अब तक किसी भी मुख्यमंत्री ने नहीं बोला। पूरी भाजपा अखिलेश यादव औरसमाजवादी पार्टी को आतंकवादी बताने पर तुली हुई है।

 आखिर क्या कह रहे हैं पीएम 
उल्टी-सीधी बयानबाजी हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी जी को ही लीजिए। मोदी ने अखिलेश पर तंज कसते हुए कहा कि अखिलेश यादव जब मुख्यमंत्री थे तब इतने शरमाते थे, शायद भीतर से इतने कांपते थे कि मैं यहां (यूपी) में आकर कार्यक्रम करता था तो वे मेरे मंच पर भी नहीं आते थे। वे एयरपोर्ट से ही भाग जाते थे। उन्हें डर लगता है कि कहीं मैं कुछ पूछ लूंगा और जवाब नहीं दे पाए तो क्या होगा।
 क्या ऐसा संभव है? इतने बड़े प्रदेश का मुख्यमंत्री अपने देश के प्रधानमंत्री के पास जाने में क्यों शर्मायेगा? अगर पीएम की बात मान भी लें तो ऐसा क्यों हुआ? आप प्रधानमंत्री हैं। पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं। आपका व्यवहार ऐसा क्यों था कि पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद भी एक मुख्यमंत्री आप से डरा? आपका व्यवहार तो ऐसा होना चाहिए कोई भी ना डरे आपसे।
पीएम की बात लोगों के सिर से ऊपर निकल गई इसीलिए  सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री के खिलाफ खूब लिखा जा रहा है अब। लोगों को यह बयान पसंद नहीं आ रहा।खासकर युवाओं को तो बिल्कुल भी नहीं। यह बात अलग है कि खुद प्रधानमंत्री पत्रकारों के सवालों से शायद डरते हैं और इसीलिए  प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करते।

विपक्ष कमजोर नहीं, काफी ताकतवर
छह महीने या साल भर पहले तक सबको लगता था कि उत्तर प्रदेश में विपक्ष बहुत कमज़ोर और निष्क्रिय है और भाजपा सरकार फिर बनेगी। बहरहाल अब ज्यों-ज्यों मतदान होता जा रहा है,  एक के बाद एक घटनाक्रम इतनी तेज़ी से बदल रहा है कि आज भाजपा की जीत पर भारी संशय है। अखिलेश और जयंत चौधरी का गठबंधन काम कर रहा है। किसान बड़ी संख्या में भाजपा के खिलाफ हैं।
 इस सबके चलते सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के चेहरों और बोली में चिंता की लकीरें साफ़ देखी जा सकती हैं और विपक्षी समाजवादी पार्टी गठबंधन में उत्साह बढ़ा दिखता है। करहल विधानसभा को लेकर काफी चर्चाएं हैं। अखिलेश यादव के खिलाफ करहल में भाजपा कहीं नहीं दिख रही। अखिलेश यादव निश्चित तौर पर बड़ी जीत दर्ज कर कर सकते हैं।
दरअसल यह पूरा चुनाव अब सीधा सीधा भाजपा बनाम समाजवादी पार्टी बनकर रह गया है। दिल्ली में केजरीवाल, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, बिहार में नीतीश कुमार, जब भी ताकतवर क्षेत्रीय दल भाजपा से सीधे लड़ते हैं तो भाजपा को नुकसान होता है। कॉन्ग्रेस के खिलाफ भाजपा हमेशा मजबूत दिखाई देती है लेकिन क्षेत्रीय दलों के सीधी टक्कर में कमजोर साबित होती है।

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