पहले दौर के मतदान के बाद भाजपा खेमे में बढ़ रही चिंता




न्यूज़ स्ट्रोक
लखनऊ/आगरा, 11 फरवरी। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के पहले दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत भाजपा के सभी बड़े छोटे नेताओं की ताकत झोंकने के बावजूद भाजपा थिंक टैंक के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। इस दौर में 58 सीटों पर मतदान होने के तुरंत बाद भाजपा ने भले ही 50 से ज्यादा सीट जीतने का दावा कर दिया हो लेकिन इस दावे में विश्वास से ज्यादा अविश्वास ही दिखाई दे रहा है। वहीं समाजवादी पार्टी और रालोद गठबंधन राहत में है।
 दरअसल समाजवादी पार्टी, रालोद और बसपा को जितना कमतर जा रहा था, वो इतने कमतर नहीं दिख रहे। पिछली बार इन 58 सीटों में से भाजपा ने 53 सीटें जीती थीं। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार इस बार 45 से 48 सीटों पर अपनी जीत मान रही है। यानी कुल मिलाकर 6 से 8 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है।
सबसे खास बात यह रही है कि इस दौर में मतदाता पूरी तरह खामोश रहा है। वहीं मुस्लिमों ने जमकर वोटिंग की है। यह अखिलेश और जयंत के लिए अच्छी खबर है। माइनोरिटी ने इस बार बीएसपी की तुलना में एसपी को ज्यादा तवज्जो दी है। मेरठ मुजफ्फरनगर जैसे क्षेत्रों में सपा पिछली बार के मुकाबले कुछ सशक्त दिख रही है।
इस बार के चुनाव में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के साथ आने से मुकाबला दो ध्रुवीय ही दिखाई दे रहा है। बहुजन समाज पार्टी आखिरी समय में जोर लगाती दिखी। वहीं, कांग्रेस भी चुनावी मैदान में दिख रही है।
पहले चरण के चुनाव की अहमियत सिर्फ बीजेपी के लिहाज से नहीं है। परीक्षा अखिलेश-जयंत की जोड़ी के लिए भी है। क्योंकि इस बार अखिलेश पूरी तरह अपने चेहरे पर चुनावी कैंपेन कर रहे हैं। प्रचार में हर जगह अखिलेश का ही चेहरा है तो जयंत भी पिता अजीत चौधरी के निधन के बाद पहली बार चुनावी चक्रव्यूह का इम्तिहान दे रहे हैं।
वेस्ट यूपी में वोटरों ने खामोश रहने और विरोधी के मजबूत घेराबंदी करने से भाजपा की दिलों की धड़कन तेज दिखीं। मथुरा सदर सीट से मंत्री श्रीकांत शर्मा के कांग्रेस के प्रदीप माथुर के चुनावी चक्रव्यूह में काफी उलझे दिखे। वहीं आगरा कैंट सीट से मंत्री डॉक्टर जीएस धर्मेश को सपा रालोद गठबंधन और बीएसपी की घेराबंदी में दिख रहे हैं। हालांकि शहरी सीटों पर बीजेपी साफ तौर पर लीड लेती हुई नजर आ रही है वहीं ग्रामीण इलाकों में बीजेपी की मुश्किल बढ़ीं हैं। खासतौर खेरागढ़, बाह और एत्मादपुर में।
आगरा में सभी 9 सीटों पर पिछली बार भाजपा को विजय मिली थी। इस बार कई सीटों पर मुकाबला काफी संघर्ष को दिखा है। हालांकि इसके बावजूद कुछ विशेषज्ञ मान रहे हैं कि भाजपा पिछली बार की जीत का रिकॉर्ड दोहरा सकती है।
मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत, मथुरा और शामली में किसान आंदोलन का असर साफ देखा गया । यहां जाटों का जो वोट 2017 में एकमुश्त बीजेपी को मिलता दिख रहा था वो एक्सपर्ट की अगर मानें तो बंट गया। इसका एक बड़ा हिस्सा गठबंधन को मिला। हालांकि जाटों ने बीजेपी का साथ पूरी तरह छोड़ दिया हो ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है।

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