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संत राजिंदर सिंह महाराज |
🙏सतगुरु की आखों से परमात्मा का प्रेम झलकता है
प्रत्येक इंसान चाहता है कि यह औरों से प्रेम करे और दूसरे भी उससे प्रेम करें। मनोवैज्ञानिक आधार पर जब इंसान की बुनियाद जरूरतों जैसे भोजन, वस्त्र, मकान और सुरक्षा की बात की जाती है, तब उसमें प्रेम की जरूरतों को भी शामिल किया जाता है।
अक्सर लोग बाहरी दुनिया में माता-पिता, भाई-बहन और रिश्तेदारों से प्रेम की उम्मीद करते हैं। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं तो वे अपने दोस्तों से प्रेम पाना चाहते हैं। युवा अवस्था में वे अपने जीवन साथी, बच्चों और सहकर्मियों से प्रेम पाना चाहते है। सत-महापुरुष हमें समझाते हैं कि इस दुनिया के सभी प्रेम अस्थायी हैं क्योंकि यह अक्सर यह देखा गया है कि समय बीतने पर रिश्तों में अनबन हो जाती है। बच्चे अपने कार्यों की वजह से दूर चले जाते हैं और हमारे बड़े बुजुर्ग माता-पिता आदि धीरे-धीरे इस दुनिया से चल बसते हैं। ऐसी स्थिति में इस दुनियावी प्रेम के खोने पर हम दुःखी हो जाते हैं।
इस प्रेम के खोने पर अक्सर हम दुःखों से राहत पाने के लिए परमात्मा की तरफ रुख करते हैं। प्रभु जब हमारी करुण पुकार को सुनते हैं, तब वे हमें किसी ऐसी हस्ती (सतगुरु) के पास भेजते हैं, जो हमें ये बता सके कि पिता परमेश्वर का स्थायी प्रेम हमारे अंतर में मौजूद है, जो कि दुनियावी प्रेम से कहीं ज्यादा है। हमारे सतगुरु हमें परमात्मा के इस अनंत प्रेम से जोड़ देते हैं।
युगों-युगों से आध्यात्मिक गुरु इस धरा पर आते रहे हैं, जिन्होंने हमें अनंत प्रेम को पाने का मार्ग दिखाया हैं। वे हमें ध्यान अभ्यास का तरीका सिखाते हैं, जिससे हम अपने अंतर में पिता परमेश्वर के प्रेम को पा सकते हैं। हम इन आंखों से परमात्मा को नहीं देख सकते। आध्यात्मिक सत्गुरु हमें अंतर की आंखों से परमात्मा को अनुभव करने का मार्ग दिखाते हैं। जब हम उनके बताए रूहानी रास्ते पर चलते हैं तब हम अपने अंतर में परमात्मा के प्रेम का अनुभव करते हैं। परमात्मा का अनुभव बुद्धि के जरिये नहीं किया जा सकता। परमात्मा प्रेम है। हमारी आत्मा उनका अंश होने के नाते प्रेम है और परमात्मा को पाने का रास्ता भी प्रेम है। पिता परमेश्वर के प्रेम का अनुभव करने के लिए हमें मनमाया की वह सारी परते हटानी होंगी, जो हमें उस दिव्य प्रेम का अनुभव करने से दूर रखती है। जब हम आध्यात्मिक सतगुरु के पास जाते हैं तो ये हमें परमात्मा के प्रेम का अनुभव कराते हैं क्योंकि उनसे रूहानी किरण निकलती है जो कि हमारी आत्मा तक पहुंचती हैं।
इस दुनिया में जब हम किसी भी वक्ता से कुछ सुनते हैं तो हमें बौद्धिक ज्ञान प्राप्त होता है। हम सिर्फ एक विषय के बारे में सीखते हैं पर जब हम आध्यात्मिक गुरु के पास जाते हैं तब हम बौद्धिक जानकारी से कुछ अधिक सीखते हैं। सतगुरु की आखों से परमात्मा का प्रेम झलकता है जिससे हमारी आत्मा को उभार मिलता है। सतगुरु की उपस्थिति में स्वाभाविक रूप से यह उभार हमें महसूस होता है। इस उभार देने वाली ताकत से हमारा ध्यान शरीर में उठकर शिवनेत्र पर टिक जाता है। सतगुरु के सहानी उमार से हमें अंतर में स्फूर्ति मिलती है, जो हमें चेतनता से जोड़ती है। इससे हमारी सुरत की धारा इस भौतिक संसार एवं शरीर से हटकर परमात्मा की तरफ जागरूक होती हैं। चेतनता का यह आनंददायक अनुभव हमारी आत्मा को उभार देता है। इस प्रभु के प्रेम से भरपूर हो जाते है तथा उस दिव्य आनंद को महसूस करते हैं और उसी में रहना चाहते हैं।
कहानी आनंद से भरपूर होने पर हमारा मन इस दुनिया के आकर्षणों से दूर हो जाता है जो हमें आत्म-साक्षात्कार और परमात्मा प्राप्ति से रोकते हैं। परमात्मा के प्रेम की शक्ति इतनी प्रबल होती है कि हम कभी न खत्म होने वाली शांति की अवस्था में पहुंच जाते हैं। फिर हमें यह अनुभव हो जाता है कि परमात्मा का यह अनंत प्रेम इस संसार के किसी भी प्रेम से अधिक उत्तम और परिपूर्ण है।
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