स्वामी रामतीर्थ की जयंती पर बही काव्यधारा, भजन-प्रवचन भी हुए




सर्वोदय सत्संग मण्डल व चर्खा मण्डल द्वारा 53वां स्वामी रामतीर्थ जयन्ती महोत्सव में काव्यपाठ

न्यूज़ स्ट्रोक
आगरा, 25 अक्टूबर। जीवन को विलोम कर लेना (ट्रांसफोरमेशन ऑफ लाइफ) ही परिपूर्णता है। रिवोल्यूशन 1779 में फ्रांस में या औद्योगिक क्रांति सिर्फ इग्लैंड में ही नहीं बल्कि 18वीं शताब्दी में स्वामी रामतीर्थ के महापरिनिर्वाण में भी क्रांति हुई। भारत की समग्र क्रांति के सूत्रधार आध्यामिक स्तर पर स्वामी रामतीर्थ व सामाजिक व राजनैतिक स्तर पर स्वामी दयानंद थे। आचार्य दत्ताचार्य पंडित ने यह बात बालूगंज लताकुंज में आयोजित स्वामी रामतीर्थ जयन्ती महोत्सव के मौके पर कही।
कार्यक्रम के शुभारम्भ कार्यक्रम संयोजक शशि भूषण शिरोमणी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि आज का कार्यक्रम स्वतंत्रता सेनानी रानी सरोज गौरिहार को समर्पित है। उन्होंने कहा कि मायावाद, भोगवाद, दिखावे के युग में रामतीर्थ और स्वामी दयानंद (आर्य समाज के संस्थापक) जैसे महापुरुषों ने जन्म लिया। भारत की जय बोलते हुए गांधी के इंकलाब से जुड़े सत्याग्रही अधिकांश लोग आर्य समाज की दीक्षा से ही आए थे। 
विख्यात कवि सोम ठाकुर ने गाते-गाते तुझे गीत का स्वर, स्वर भजन हुआ... काव्यपाठ व सतीश चंद विभव ने गांधी जी के प्रिय भजन वैष्णव जन... गाया।  कुसुम चतुर्वेदी ने स्वामी रामतीर्थ की रचना कहां जाऊं, किसे लेलूं, किसे छोड़ूं मैं... का पाठ किया। इसके अलावा अश्वनि शिरोमणी व निमिषा स्वरूप ने भजन, राजेन्द्र मिलन, नीरज, राजेन्द्र प्रसाद आदि ने काव्य पाठ किया।
संचालन शशि शिरोमणी, धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अशोक शिरोमणी ने दिया। इस अवसर पर मुख्य रूप से ललित सत्संगी, डॉ. नारायण सिंह, गिरीश चिन्सौरिया, असीम शिरोमणी, अमोल शिरोमणी, राजेन्द्र मिलन, नीरज स्वरूप, मोहन सिंह सोलंकी, किरन शर्मा, रविभूषण शिरोमणी, अशोक शिरोमणी, रिचा आदि उपस्थित थीं।

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