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कांफ्रेंस के दौरान मंच पर मौजूद विशेषज्ञ डॉक्टर्स टीबी की बीमारी पर चर्चा करते हुए। |
-नेटकॉन में दूसरे दिन टीबी और फेंफड़ों की बीमारियों पर हुई चर्चा , मेडिकल कालेजों में किया जा रहा एमडीआर टीबी का इलाज
न्यूज़ स्ट्रोक
आगरा, 28 फरवरी। टीबी के 40 प्रतिशत मरीजों में लक्षण नहीं होते हैं। 63 प्रतिशत में लक्षण तो होते हैं लेकिन इलाज के लिए डॉक्टर के पास नहीं जाते और मर्ज बढ़ता जाता है। ऐसे में टीबी के संदिग्ध मरीजों की स्क्रीनिंग होने चाहिए। ट्यूबरक्लोसिस एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा डिपार्टमेंट ऑफ ट्यूबरक्लोसिस एंड रेस्पीरेटरी डिजीज, एसएन मेडिकल कालेज व यूपी टीबी एसोसिएशन एंड द यूनियन साउथ ईस्ट एशिया रीजन के सहयोग से तीन दिवसीय नेटकॉन-2022 के दूसरे दिन मंगलवार को होटल जेपी पैलेस में टीबी और फेंफड़ों की बीमारियों पर चर्चा की गई।
चेयरमैन ऑफ नेशनल टास्क फोर्स आफ मेडिकल कालेजेज नेशनल टीबी एल्मिनेशन प्रोग्राम डा. एके भारद्वाज ने बताया कि 63 प्रतिशत मरीज इलाज कराने नहीं आ रहे हैं। जबकि टीबी के 40 प्रतिशत मरीजों में कोई लक्षण नहीं होते इसलिए वे भी इलाज नहीं करा रहे हैं। 10 वर्ष पूर्व एमडीआर के मरीजों का इलाज 22 महीने चलता था और 22 लाख का खर्चा आता था। इन मरीजों को इंजेक्शन भी लगवाने पड़ते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। 11 से 18 महीने इलाज चल रहा है और खर्चा 10 लाख रुपये आता है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल हॉस्पिटल जयपुर के डॉ. विक्रम कुमार जैन ने बताया कि इंटरस्टीशियल लंग डिजीज, आईएलडी की समस्या भी बढ़ रही है, एलर्जी के कारण इस तरह की समस्याएं बढ़ी है। कोविड के बाद से आईएलडी के मरीज अधिक मिल रहे हैं।
आगरा, 28 फरवरी। टीबी के 40 प्रतिशत मरीजों में लक्षण नहीं होते हैं। 63 प्रतिशत में लक्षण तो होते हैं लेकिन इलाज के लिए डॉक्टर के पास नहीं जाते और मर्ज बढ़ता जाता है। ऐसे में टीबी के संदिग्ध मरीजों की स्क्रीनिंग होने चाहिए। ट्यूबरक्लोसिस एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा डिपार्टमेंट ऑफ ट्यूबरक्लोसिस एंड रेस्पीरेटरी डिजीज, एसएन मेडिकल कालेज व यूपी टीबी एसोसिएशन एंड द यूनियन साउथ ईस्ट एशिया रीजन के सहयोग से तीन दिवसीय नेटकॉन-2022 के दूसरे दिन मंगलवार को होटल जेपी पैलेस में टीबी और फेंफड़ों की बीमारियों पर चर्चा की गई।
चेयरमैन ऑफ नेशनल टास्क फोर्स आफ मेडिकल कालेजेज नेशनल टीबी एल्मिनेशन प्रोग्राम डा. एके भारद्वाज ने बताया कि 63 प्रतिशत मरीज इलाज कराने नहीं आ रहे हैं। जबकि टीबी के 40 प्रतिशत मरीजों में कोई लक्षण नहीं होते इसलिए वे भी इलाज नहीं करा रहे हैं। 10 वर्ष पूर्व एमडीआर के मरीजों का इलाज 22 महीने चलता था और 22 लाख का खर्चा आता था। इन मरीजों को इंजेक्शन भी लगवाने पड़ते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। 11 से 18 महीने इलाज चल रहा है और खर्चा 10 लाख रुपये आता है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल हॉस्पिटल जयपुर के डॉ. विक्रम कुमार जैन ने बताया कि इंटरस्टीशियल लंग डिजीज, आईएलडी की समस्या भी बढ़ रही है, एलर्जी के कारण इस तरह की समस्याएं बढ़ी है। कोविड के बाद से आईएलडी के मरीज अधिक मिल रहे हैं।
खर्राटे आना है बीमारी, ह्रदय रोग का खतरा
डॉ. भरत गोपाल सीनियर कंसल्टेंट, दिल्ली ने बताया कि खर्राटे को लोग समझते हैं कि गहरी नींद के कारण आ रहे हैं लेकिन ऐसा है नहीं। खर्राटे बीमारी हैं। खर्राटे आने पर कुछ सेकेंड के लिए नींद टूटती है उस समय दिमाग जग जाता है और सांस बंद हो जाती है। ऑक्सीजन की आपूर्ति दिमाग में नहीं होती है। इससे हृदय रोग होने का खतरा बढ़ता है।
बच्चों में बढ़ रहा एलर्जिक अस्थमा
आयोजन सचिव, एसएन मेडिकल कालेज के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के डॉ. जीवी सिंह ने बताया कि वायु प्रदूषण बढऩे और जलवायु परिवर्तन के कारण बच्चों में एलर्जिक अस्थमा बढ़ रहा है। स्कूल जाने वाले बच्चे इससे प्रभावित हो रहे हैं, जिन लोगों का घर हाईवे और सडक़ के किनारे हैं उनके बच्चों में एलर्जिक अस्थमा की समस्या ज्यादा मिल रही है।
कार्यशाला में मुख्य रूप से आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. संतोष कुमार, सचिव डॉ. गजेन्द्र विक्रम सिंह, डॉ. सूर्यकान्त, डॉ. सचिन कुमार गुप्ता, डॉ. प्रशान्त प्रकाश, डॉ. संजीव लवानिया, डॉ. अमिताभ दास शुक्ला, डॉ. शामीम अहमद, डॉ. आनंद कुमार, डॉ. संजीव लवानिया, डॉ. अधेष कुमार आदि मौजूद थे।
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