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| ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण करते बाएं से बाबर इमाम, सुधीर बेकस, कुंवर कुसुमेश, डॉ. त्रिमोहन तरल, अमीर अहमद जाफरी और भरत दीप माथुर। |
न्यूज़ स्ट्रोक
आगरा, 18 मार्च। आगरा राइटर्स एसोसिएशन द्वारा भरत दीप माथुर के ग़ज़ल संग्रह 'कहां चले आए' का लोकार्पण पश्चिम पुरी स्थित होटल वान्या पैलेस में शनिवार को किया गया।संग्रह की समीक्षा करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. त्रिमोहन तरल ने कहा कि गजलगोई की दुनिया में हिंदी ग़ज़ल और उर्दू ग़ज़ल के नाम पर की जा रही दुर्भाग्यपूर्ण धड़ेबाजी से दूर भरत भाई हिंदी और उर्दू ग़ज़ल में कोई फर्क नहीं करते। उनके यहाँ दोनों जुबानों को बराबर की अहमियत है। एक बानगी देखें- 'इल्मो-अदब के चाहने वालो, हिंदी वालो उर्दू वालो। मुझको तुम दोनों अपना लो, हिंदी वालो उर्दू वालो। इस विरसे को ले डूबेगी, यूँ आपस की खींचातानी। जैसे भी हो इसे बचा लो, हिंदी वालो उर्दू वालो..'
रचनाओं में है ग़ज़ल की हर खूबी
रायबरेली के सुधीर बेकस ने बतौर मुख्य अतिथि अपने उद्बोधन में कहा कि भरत दीप माथुर की ग़ज़लों में सादगी और सफाई, रवानी, मौसीकियत, शोखी और बलंदी-ए-तखय्युलात यानी ग़ज़ल की हर खूबी नजर आती है।
दिल में उतर जाते हैं अशआर
विशिष्ट अतिथि पटना से आए सैयद बाबर इमाम ने कहा कि भरत दीप माथुर की शायरी में सादगी है और वह बहुत आसानी से अपनी बात कह देते हैं जिसकी वजह से इनके अशआर दिल में उतर जाते हैं।
हिंदी-उर्दू की खाई को पाटते जा रहे
लखनऊ के वरिष्ठ साहित्यकार कुँवर कुसुमेश ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि महज इंसानियत को अपना ईमान समझने वाले कुछ अच्छे कलमकारों में से एक हैं भरत दीप जो हिंदी-उर्दू की खाई को पाटते जा रहे हैं
भरत दीप माथुर ने सबका आभार व्यक्त करते हुए अपनी गज़लगोई का सफर सबसे साझा किया। आगरा राइटर्स एसोसिएशन के संस्थापक डॉ. अनिल उपाध्याय ने समारोह का संचालन किया। आयोजन समिति की अध्यक्ष कुसुम माथुर, स्वागत समिति की सचिव शालिनी माथुर, रमेश पंडित, बृजेश चंद्रा, अलका अग्रवाल, वैभव असद अकबराबादी, नवीन वशिष्ठ, सलीम अहमद एटवी, मान सिंह मनहर, जाकिर सरदार ने अतिथियों का स्वागत किया।


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