यह पर्व देश के अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व का नाम दिया गया है। क्योंकि इस दिन खिचड़ी का दान किया जाता है। हमारे देश में ऋतु परिवर्तन को उत्सव रूप में मनाया जाता है। प्रकृति में परिवर्तन के साथ-साथ व्यक्ति में आंतरिक रूप से परिवर्तन आते हैं। जिसके प्रभाव को संतुलित करने हेतु दान देने का रिवाज़ है।
मकर संक्रांति में खिचड़ी के साथ गुड़ से बने मिष्ठान का दान किया जाता है। आम दिनों में व्यक्ति दान नहीं कर पाता, वहीं पर्व के अवसर पर दान देकर ना केवल पुण्य अर्जित करता है , वहीं अपने ग्रहों की भी शुद्धि कर लेता है।
तिल का दान दूर करता है आर्थिक बाधाएं
ज्योतिष अनुसार तिल के दान से व्यक्ति के जीवन में आ रही आर्थिक बाधाएं दूर होती हैं। वहीं गुड़ के दान से व्यक्ति में उमंग, उत्साह व साहस उत्पन्न होता है। चावल के दान से व्यक्ति का मन मस्तिष्क शांत व संतुलित रहता है। काली उरद दाल के दान से व्यक्ति का जीवन बाधा मुक्त बनता है।
शुद्ध घी का दान करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति
शुद्ध देसी घी का दान करने से व्यक्ति को ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। सुख सुविधा व आय के नए साधन बनते हैं।
इस दिन वस्तु दान करने से आय के नए साधन बनते हैं। आय के साथ-साथ उच्च स्वास्थ्य की भी प्राप्ति होती है। ऊनी कपड़ों के दान से व्यक्ति के जीवन मे आ रही बाधाओं से बचाव होता है। अकाल मृत्यु नहीं होती। पितृ दोष का शमन होता है।
पौराणिक कथा अनुसार मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदार पर्वत पर गाड़ दिया था। इस कारण यह पर्व मनाया जाता है।
आध्यात्मिक उन्नति का पर्व
महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था। मकर संक्रांति के दिन उन्होंने अपना शरीर त्यागा था। इस दिन सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर गमन करता है। जिसे उत्तरायण कहते हैं। इस सूर्य गमन से शुभ ऊर्जा का प्रवाह होता है। व्यक्ति स्वस्थ्य व शांति का अनुभव करता है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह आध्यात्मिक उन्नति के लिए बेहद शुभ दिन है।
देश में अनेक प्रांतों में जैसे उत्तर प्रदेश, पंजाब बिहार व तमिलनाडु में मकर संक्रांति पर्व नई फसल काटी जाती है। किसान आभार रूप में यह दिन मनाते हैं। पंजाब , जम्मू-कश्मीर में लोहड़ी व तमिलनाडु में पोंगल के नाम से यह पर्व मनाया जाता है। वहीं उत्तर प्रदेश और बिहार खिचड़ी के नाम से इस पर्व को मनाते हैं।
भारतीय संस्कृति में अन्न को स्वयं ग्रहण करने से पूर्व दान रूप में निकालने का रिवाज़ है। इस कारण दान कर व अग्नि को अर्पित कर नई फसल को प्रयोग में लिया जाता है।
नदी में स्नान देता है सकारात्मक ऊर्जा
इस दिन नदी में स्नान करने से आंतरिक विषाक्ता नष्ट होकर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। अर्थात् व्यक्ति पूर्ण रूप से आगे बढ़ने के लिए तैयार हो जाता है। शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक उन्नति का यह पर्व।
मोक्ष प्राप्ति का पर्व
गीता अनुसार इस दिन जो व्यक्ति अपना शरीर त्यागता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
लेखिका दीप्ति जैन
आधुनिक वास्तु एस्ट्रो विशेषज्ञ हैं
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