-कैलाश मंदिर, दयालबाग इंडस्ट्रियल क्षेत्र, धांधुपुरा क्षेत्र में ट्रीटमेंट किए बगैर व्यवसायिक व सीवर का पानी सीधे यमुना में डाला जाता है
-यहां यमुना की मिट्टी में हैवी मैटेल की मात्रा बहुत अधिक थी, यह लिवर, किडनी सहित कैंसर जैसे रोगों के लिए भी जिम्मेदार
-कार्यशाला में इटली, यूएस, कनाडा, श्रीलंका सहित 500 से अधिक प्रतिनिधि ले रहे भाग
न्यूज स्ट्रोक
आगरा, 17 दिसंबर। ताजनगरी में यमुना के प्रदूषण को पेठे की खेती दूर करेगी। खरबूज व तरबूज की तरह यमुना किनारे पेठे की खेती की जाए तो यमुना के पानी में हैवी मैटेल (जिंक, कैड्मियम, लेड, निकिल, क्रोमियम) जैसे प्रदूषण को दूर किया जा सकता है। यह कैंसर सहित कई घातक रोग के लिए जिम्मेदार हैं। सेंट जॉन्स कालेज में वनस्पति विभाग की शोधार्थी तलद खान ने रविवार को विवि के संस्कृति विभाग में कौशाम्बी फाउंडेशन, नीलम ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन व डिपार्टमेंट ऑफ हिस्ट्री ड कल्चर से संयुक्त संयोजन में इंटरनेशनल कांफ्रेंस इन मल्टीडिसिप्लिनरी रिसर्च एंड प्रैक्टिस फार सस्टेनेबल डलवपमेंट एंड इनोवेशन में अपने शोधपत्र प्रस्तुत करते हुए बताया कि फाइटोरेमीडेशन ऑफ हैवी मैटेल कन्टेमिनेशन वॉटर एंड सोइल ऑफ यमुना रिवर विषय पर तीन वर्ष के शोध के दौरान यह नतीजे प्राप्त किए।
उन्होंने कहा कि कैलाश मंदिर, दयालबाग इंडस्ट्रीयल क्षेत्र, धांधुपुरा क्षेत्र में माह में तीन बार अलग-अलग समय पर यमुना के पानी की जांच की गई। जहां ट्रीटमेंट किए बगैर व्यवसायिक व सीवर का पानी सीधे यमुना में डाला जाता है। यहां यमुना की मिट्टी में हैवी मैटेल की मात्रा बहुत अधिक थी, जो न के बराबर होनी चाहिए। हैवी मैटेल, लिवर, किडनी सहित कैंसर जैसे रोगों के लिए भी जिम्मेदार हैं। हमने अपने शोध में पाया कि कुकरविटेसी फैमिली का पौधा बेनिनकेसा हिस्पेडा (पेठा) की पौध हैवी मैटेल के प्रदूषण को सबसे अधिक मात्रा में शोषित कर लेता है, जिससे यमुना के पानी व मिट्टी में मौजूद हैवी मैटेल का प्रदूषम तेजी से कम हुआ। यानि कुकरबिटेसी फैमिली के तरबूज और खरबूज की खेती साथ पेठे की खेती यमुना किनारे की जाए तो यमुना के प्रदूषण तो तेजी से काफी कम किया जा सकता है।
रविवार को रिसर्च पेपर प्रिजेन्टेशन कार्यक्रम का संयोजन विमल मोसाहरी ने किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से डॉ. नितिन वाही, प्रियांसी राजपूत, नीतू सिंह, अंकित वर्मा, तुषार चौधरी, संजय कुमार आदि मौजूद रहे।
मिलीग्राम/प्रति किग्रासामान्य स्थिति में- पेठे के पौधे से ट्रीटमेंट के बाद- केंचुए की खाद के साथ ट्रीटमेंट
जिंक: 383 200 64
निकिल 120 28 22
लेड: 202 58 44
कैड्मियम: 52 24 26
क्रोमियम: 249 122 87
वहीं जवाहरलाल नेहरू एग्रीकल्चरल विवि के एक्सटेंन्सन एजूकेशन टीकमगढ़ कैम्पस के अध्यक्ष डॉ. एसपी सिंह ने बताया कि किस तरह से उनके संस्थान में भारतीय अनुसंधान परिषद से प्राप्त परियोजना प्रोजेक्ट के तहत ग्लूटन फ्री गेंहूं के बीज तैयार किए जा रहे हैं। ग्लूटन फ्री गेंहूं से तैयार आटे में खिंचाव कम और स्वास्थ्य के लिए अधिक लाभदायक होता है। नैनों तकनीक के जरिए जीन्स में परिवर्तन कर फसल, फल और फूलों की ऐसी नस्लें तैयार की जा रही हैं जिन पर बीमारियां नहीं लगती।
खेतों में पराली जलाने से घट रहा फसलों का उत्पादन
हरियाणा रोहतक, बाबा मस्तनाथ विवि की डॉ, चंचल मल्होत्रा अपने सिलिकॉन फर्टीलिजर का शोध टमाटर व चावल की फसल पर किया। जिससे टमाटर की फसल में लगभग 20 प्रतिशत और चावल की फसल में 120 प्रतिशत उत्पादन बढ़ गया। इतना ही नहीं, टमाटर में पाए जाने वाले एंटीकैंसरस लाइकोपीन पिगमेंट की मात्रा भी बढ़ गई। डॉ. चंचल ने बताया कि खेतों में पराली जलाना मिट्टी में सिलिकॉन की कमी होने का सबसे बड़ा कारण है। दक्षिण भारत में सिलिकॉन खाद का प्रयोग काफी किया जा रहा है, परन्तु उत्तर भारत में जागरूकता की कमी है। सामान्यतौर पर सिलिकॉन मिट्टी में पाया जाता है। गेंहूं व धान की फसल सबसे अधिक सिलिकॉन मिट्टी में से शोषित कर लेती है। फसल कटने बाद बची पराली में बहुत अधिक मात्रा में सिलिकॉन पाया जाता है। जिसे किसी तरह नरम बनाकर मिट्टी में मिला दिया जाए तो मिट्टी में सिलिकॉन की कमी नहीं रहेगी।
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